महाविद्यालयक के उन्नायक बैरिस्टर नरेन्द्रजीत सिंह का जीवन परिचय

श्रेष्ठ कानूनविद, शिक्षाविद्, समाजसेवी, सनातन धर्म के उन्नायक,आधुनिक ज्ञान-विज्ञान तकनीक के प्रशंसक ,प्रसारक एवं अनेक शिक्षण संस्थाओं के प्रतिष्ठापक बैरिस्टर नरेन्द्रजीत सिंह का जन्म 1911 ई0 मे कानपुर में हुआ था। आपके पिता रायबहादुर विक्रमाजीत सिंह की शिक्षा, समाजसेवा और कानून के क्षेत्र में देशरत्न थे ही । आपने बी0एन0एस0डी0 स्कूल में सन् 1920 से 1926 ई0 तक शिक्षा ग्रहण की, सन् 1926 में गणित मे विशेष योग्यता कके साथ हाईस्कूल प्रथम श्रेणी में तथा समग्र संयुक्त प्रान्त में बारहवे स्थान के साथ उत्तीर्ण हुए। सन् 1928 में क्राइस्ट चर्च कालेज से इण्टरमीडिएट की परीक्षा गणित व रसायन विज्ञान विषय में विशेष योग्यताके साथ प्रथम श्रेणी में उत्तीर्ण की तथा प्रदेश में छठा स्थान प्राप्त किया ।
आपने सन् 1930 ई0 में इलाहाबाद विश्वविद्यालय से बी0एस-सी0 की उपाधि प्रथम श्रेणी में चतुर्थ स्थान पाकर प्राप्त की । दो माह तक विक्रमाजीत सिंह सनातन धर्म महाविद्यालय में एल0एल0बी0 की पढाई की। उसके पश्चात इनर टैम्पल, लंदन से बैरिस्टर की उपाधि प्राप्त की। उसी वर्ष आपने गणित विषय के साथ बी0एस-सी0 स्पेशल उपाधि प्राप्त की। क्रीडा के क्षेत्र में भी आप अग्रणी थे। इलाहाबाद विश्वविद्यालय की टेनिस टीम के कैप्टन भी रहे। आपका विवाह कश्मीर नरेश के दीवान बद्रीनाथ जी की गुणवती, विदुषी कन्या सुशीला जी के साथ हुआ। एक विद्वान अधिवक्ता के दायित्व के साथ ही साथ आपने अनेक सामाजिक, शैक्षिक एवं सांस्कृतिक संस्थाओं का मार्गदर्शन एवं संचालन भी किया। अपने पिता श्री विक्रमाजीत सिंह जी के देहान्त के पश्चात वर्ष 1993 तक आप इस महाविद्यालय की प्रबन्ध समिति के सचिव एवं प्रबन्धक रहे तथा सन् 1956 ई0 से 1993 तक आप ब्रह्यवर्त सनातन धर्म महामण्डल के अध्यक्ष भी रहे। आप अनेक सामाजिक संास्कृतिक एवं धार्मिक संस्थाओं, शिक्षण संस्थाओं, पुस्तकालयों, औषधालयों आदि के सभापति/अध्यक्ष भी रहे।
आप जे0के0 सिन्थेटिक्सस, कानपुर व नेशनल इंश्योरेन्स कम्पनी, कलकत्ता के डायरेक्टर भी रहे। बैरिस्टर सााहब ने बी0आई0सी0 के सलाहकार, न्यायालय द्वारा नियुुक्त विवाचक तथा राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के प्रान्त संघा संचालक जैसे दायित्वों का सफलतापूर्वक निर्वहन कियाा। आप सांस्कृतिक राष्ट्रवाद के भी सजग उन्नायक थे। 31 अक्टूबर 1993 को वे इस नश्वर शरीर को त्याग कर यश शेष हुए।